प्रिय पाठको, मैं रिया सिंह हूँ.
यह नई कहानी मेरे पड़ोस में रहने वाली एक खूबसूरत लड़की आज़िमा की है. वो मेरी सहेली है.
उसने मुझे आपबीती बताई तो मैंने उसे आपके सामने कहानी के रूप में पेश करने की सोची.
उसी के शब्दों में जवान देसी गर्ल चुदाई कहानी पढ़ें.
मेरा नाम आज़िमा है.
मैं झोपड़पट्टी कॉलोनी में रहती हूं.
मेरी उम्र 19 साल है, मेरा फिगर 32 28 34 है. मेरा रंग गोरा होंठ गुलाबी हैं.
मेरी मां घरों में काम करके गुजारा करती है.
मै गरीबी के कारण अक्सर दूसरों के दिए कपड़े ही पहनती हूं.
हमारे मोहल्ले में एक शंकर दादा रहता है उसकी दादागिरी से मोहल्ले में सब लोग डरते हैं वह काफी हट्टा कट्टा छबीला नौजवान था.
उसकी उम्र तकरीबन 35 साल होगी और उसने कई औरतों के साथ चुदाई की है.
वह कई लड़कियों की सील तोड़ चुका है, उनमें से तीन मेरी सहेलियां भी हैं.
मेरी सहेलियां जब अपनी जुदाई की बातें मुझे सुनाती थी तो मुझे अच्छा लगता था, मेरे शरीर में सनसनी दौड़ जाती थी.
उनकी बातें सुनकर मेरा दिल भी करता था कोई मेरी चूत की सील भी तोड़े!
शंकर दादा मेरे ऊपर भी नजर रखता था, आते जाते मौका मिलने पर मेरी चूची दबाता था और मेरे चूतड़ पर हाथ मार कर निकल जाता था.
मैं इसका मजा लेती थी और डर के मारे चुपचाप निकल जाती थी और किसी को नहीं बताती थी.
शंकर ने मौका मिलने पर एक दो बार मुझे दबोच भी लिया था और मेरे होठों पर अपने होंठ लगाकर लंबा किस किया; अपनी बाहों में दबोच कर मेरे चूतड़ों को दबाया था.
वह अक्सर हमारे मोहल्ले की परचून की दुकान पर खड़ा रहता था.
लाला के साथ उसकी गहरी सांठगांठ थी. लाला भी मोहल्ले के कई औरतों को चोद चुका था और बदले में दुकान से सामान दे देता था.
सर्दी के दिन थे और शाम के करीब 7 बजे थे लेकिन बिजली चले जाने के कारण अँधेरा छा चुका था।
मेरी माँ ने मुझे कहा- आज़िमा, जा तेल ले आ बाबू की दुकान से! उसे कहना पैसे मां दे देंगी!
मैं उदास मन से ही करियाने की दुकान पर गई क्यूंकि दुकानदार एक नंबर का हरामी था।
इससे पहले भी उसने एक दो लड़कियों को छेड़ा था और पैसे देकर केस दबाये थे।
वह लड़की को पूरा ऊपर से नीचे देखता था और उसकी नजर वासना से भरी होती थी.
उसका चुदाई का कीड़ा बहुत बलवान था और उसे हमेशा चोदने की इच्छा लगी रहती थी।
मैंने जैसे ही दुकान पर पहुँच कर तेल माँगा, वह मुझे अपनी वही कुत्ते वाली नजर से देखने लगा.
तब दुकान पर एक और महिला भी खड़ी थी।
बाबूलाल ने उसको सामान दिया और वह चली गई।
बाबूलाल मेरी तरफ देख कर बोला- दुकान में अंदर खड़ी हो जा!
मैं उसकी दुकान में गई, उसका दुकान के पीछे वाले हिस्से में खड़ी हो गई.
वहां पर कुछ अंधेरा था.
दुकान के अगले हिस्से में लालटेन की रोशनी थी इसलिए मैं अंदर से बाहर का नजारा देख सकती थी लेकिन बाहर से मुझे कोई नहीं देख सकता था.
तभी मैंने देखा कि शंकर दादा भी दुकान में आ गया.
लाला शंकर को बोला- सौदा दुकान में है, ले ले!
शायद लाला ने शंकर दादा को इशारा किया था शंकर दादा दुकान में आकर मेरे पीछे सटकर खड़ा हो गया.
मैं डर कर पीछे हटने ही वाली थी कि उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला- घबरा मत, मैं हूँ.
मैं बोली- मेरी माँ राह देख रही है घर पे!
शंकर दादा बोला- अरे रानी, घबराती क्यूँ है, मैंने तेरी माँ को भी कितनी बार चोदा है.
यह सुन कर मुझे अजीब तो लगा लेकिन फिर मेरे दिल में ख्याल आया कि शंकर की बात सच तो लगती है क्यूंकि मेरी माँ कभी कभी देर से 20-25 मिनट तक वापस नहीं आती थी।
शंकर ने अपनी लुंगी में उसका तना हुआ लंड चुदाई के लिए पोजीशन लिए ही खड़ा था जो मेरे पीछे मेरे चूतड़ों से सटा हुआ था.
मैंने आज तक कभी लंड देखा भी नहीं था.
उसने जैसे ही लुंगी हटाई, मेरे दिल में एक सनसनी उठी.
उसका लंड बालों से घिरा हुआ था, उसके गोटे बड़े बड़े और गोल थे।
उसने लंड को हाथ में लिया और हिलाने लगा.
उसने मुझे वहीं एक बोरी पर बिठाया और बोला- यह ले, चख इस सेक्स के क़ुतुब मीनार को!
मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैंने जैसे ही मुंह में लंड को लिया, मेरे शरीर में एक अलग ही आनन्द उठा और मैं लंड को अंदर तक चूसने लगी।
शंकर ने मेरा माथा पकड़ा और उसने लंड को मुँह में अंदर बाहर करना चालू कर दिया।
शंकर का लौड़ा मेरे मुँह को चोद रहा था और मुझे भी चूत के अंदर गुदगुदी होने लगी थी।
मैंने कुछ 2 मिनट उसका लौड़ा चूसा था कि वह बोला- चल रानी, अपने कपड़े उतार दे!
तो मैंने खुशी खुशी अपनी चोली और घाघरा उतारा.
मैंने आज ब्रा नहीं पहनी थी इसलिए चोली खोलते ही शंकर को मेरे बड़े बड़े चुच्चे दिखने लगे।
वह भूखे लोमड़ की तरह मेरे ऊपर टूटा और उसने बारी बारी दोनों स्तन चूस डाले।
उसका लंड मेरी जांघों को अड़ रहा था और मुझे चूत में चुदाई की गुदगुदी हो रही थी।
उसने स्तन को चूस चूस के उनमें दर्द सा अहसास करवाया.
लेकिन यह दर्द बहुत मीठा था और मैं खुद चाहती थी कि शंकर दादा मेरे चुचे और भी जोर से चूसे।
शंकर अब रुका और उसने मुझे बोरियों के ऊपर ही लिटा दिया।
उसने अपना लंड मेरी चूत के ऊपर घिसा और उसके लंड की गर्मी मुझे बेताब कर रही थी।
मैंने उसके सामने देखा और उसके चेहरे पर मेरी जवान चूत के लिए टपकती हुई लार साफ़ नजर आ रही थी।
तभी बिजली लाइट आ गई और शंकर जल्दी से अलग हो गया और हमने जल्दी-जल्दी कपड़े पहन कर अलग हो गए.
और मैं जल्दी से दुकान से सामान लेकर घर की तरफ चल दी.
शंकर दुकान पर ही लाला से बातें करने लगा.
उस रात मुझे नींद नहीं आई, बार-बार दुकान का नजारा मेरी आंखों में घूम रहा था और मेरे शरीर में सनसनी दौड़ रही थी; एक अजीब सा एहसास हो रहा था.
फिर कुछ दिनों बाद मुझे मेरी सहेली की शादी में जाना था.
उसका घर दूसरे शहर में था इसलिए मैं मां को 7 दिन का बोल कर अपनी सहेली के घर जाने के लिए निकल गई.
उस दिन मैंने गुलाबी ब्लाउज गुलाबी साड़ी पहनी हुई थी.
जब मैं शंकर दादा की झोपड़ी के सामने से निकली, तब शंकर बाहर सड़क पर ही खड़ा था और मुझे देख कर उसके होठों पर शरारत भरी मुस्कान थी.
मैं भी उसको स्माइल देकर निकल गई.
अपनी सहेली के घर पहुंच कर उसकी शादी में शामिल हुई लेकिन मेरा दिल और दिमाग शंकर दादा में खोया हुआ था.
एक अजीब सी बेचैनी मेरे अंदर दौड़ रही थी.
इसलिए मैं शादी से निपट कर उसी रात को वापस घर के लिए रात वाली बस में बैठकर वापस आ गई और अपने मोहल्ले के बाहर बस से उतर कर पैदल आ रही थी.
पूरा मोहल्ला रात होने के कारण सुनसान था. गली में कुत्तों के भौंकने की आवाज आ रही थी.
ठंड होने के कारण मैं जल्दी जल्दी चलने लगी.
मैंने देखा कि सामने खंभे के नीचे कोई आदमी खड़ा है.
जैसे जैसे मैं नजदीक आ रही थी, वह आदमी मुझे साफ दिखने लगा.
मैंने देखा कि वह शंकर दादा ही था.
शायद उसको अंदाजा था कि मैं रात को वापस आऊंगी.
जैसे ही मैं उसके करीब पहुंची, उसने मुझे अपनी बांहों में उठा कर मेरे रस मेरे होठों पर एक लंबा चुंबन लिया और मुझे उठा कर अपनी झोपड़ी के अंदर ले गया.
मैंने उसकी खोली देकही, साजो सामान का सारा सामान था, मोटे डनलप के गद्दे थे.
उसी पर उसने मुझे लिटा दिया और अपनी झोपड़ी का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
अंदर हीटर चलने के कारण ठंड का अहसास कम हो रहा था.
शंकर ने दारू पी हुई थी इसलिए वह मेरे ऊपर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा और जल्दी ही उसने मेरी साड़ी ब्लाउज अलग कर दिया और मेरी चूची को मुंह में लेकर चूसने लगा.
वह पागलों की तरह कभी मेरी चूची कभी मेरे होंठ चूस रहा था.
फिर उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल कर पेटिकोट उतार कर मुझे पूरी नंगी कर दिया और जल्दी ही उसने अपनी लुंगी उतार दी और साथ ही अपनी शर्ट भी उतार कर वह भी पूरा नंगा होकर मेरे ऊपर आ गया.
अब मुझे उसके शरीर की गर्मी भी मिल रही थी और मेरे मुंह से सिसकारियां निकलने शुरू हो गई.
शंकर मेरा नंगा शरीर रोशनी में देखकर पागल हो गया था और मेरे पूरे शरीर को चुंबन कर रहा था.
उसका फौलादी लंड मेरी जांघों के बीच तहलका मचा रहा था.
मेरी बुर पानी छोड़कर गीली हो गई थी.
मेरे मुंह से मीठी-मीठी सिसकारियां निकलने लगी और मस्ती में मेरी आंखें बंद हो गई.
मेरी टांगें चौड़ी करके शंकर अपना लंड मेरी बुर पर लगाया.
शंकर ने एक धीमा झटका दिया और लंड मेरी बुर में पेल दिया।
उसका आधे से ज्यादा लंड मेरी बुर में था.
मैं चीख पड़ी और मेरी चूत से खून निकल पड़ा.
“अरे बहनचोद, तू तो कुँवारी है मेरी आज़िमा रानी … पहले बताती ना!”
फिर अचानक शंकर ने ताकत से धक्का लगा दिया और शंकर का लंड मेरी बुर को चीरता हुआ अंदर घुस गया.
मेरे मुंह से लंबी दर्द भरी चीख निकल गई- ऊंईई ईईई … मां मर गई … उई उई … आह … आह … ओह … ईईईई … ऊऊऊ!
शंकर ने फिर ताकत से धक्का मारा और लंड आधे से ज्यादा मेरी बुर को फाड़ता घुस गया.
दर्द के मारे मैं अपना सिर इधर-उधर मार रही थी और दर्द भरी सिसकारी और चीखें मेरे मुंह से निकल गई थी जो शंकर दादा की झोपड़ी में गूंज रही थी.
शंकर का फौलादी लंड मेरी बुर में बच्चेदानी तक जा रहा था. शंकर के लंड ने मेरी बुर की दीवारों को बुरी तरह से फैला कर हिला कर दिया था.
मेरी चीखें निकल रही थी- ईईईई … ऊऊऊऊ … ईईईई … आ … उई … मां … ममम … ररर … गई … शीईईई ईईई … ममम … आहह हहह … उई!
शंकर ने अपनी पूरी ताकत से और धक्का मार कर अपना पूरा लंड जड़ तक मेरी बुर में बच्चेदानी तक गाड़ दिया.
“ईईई … ऊऊऊऊ … ईईईई … ऊऊऊ ऊमम ममम … हहहह … उउ उईई ईईई”
मैं बोली- प्लीज, अपना लंड बाहर निकालो मुझे बहुत दर्द हो रहा है!
शंकर- बस मेरी रानी आज़िमा … बस थोड़ी देर में तुम्हें मजा आएगा. मेरी जान बस थोड़ा सा दर्द बर्दाश्त कर ले … फिर तू मेरा लंड मस्ती में लेगी!
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बुर में किसी ने गर्म गर्म मूसल डाल दिया हो.
शंकर अब काफी जोर जोर से धक्के मार कर अपना लंड मेरी बुर में अंदर बाहर कर रहा था.
लंड हर बार बच्चेदानी में जा रहा था और मैं हर धक्के पर उछल रही थी.
दर्द के कारण मेरी आंखों में आंसू आ गए थे.
शंकर कभी मेरी आंखों को चूम रहा था और कभी मेरे होंठों को चूस रहा था और अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों चूची मसल रहा था.
तभी मेरी बुर ने पानी छोड़ दिया और मुझे दर्द में आराम और मस्ती आनी शुरू हो गई थी इसलिए मैंने अपनी बांहों का हार बना कर शंकर दादा के गले में पहनाकर उसे अपने सीने की तरफ भींच लिया.
मेरे मुंह से अब मस्ती भरी सिसकारियां गूंज रही थी जिसमें हल्के हल्के दर्द की सिसकारियां भी थी.
शंकर की झोपड़ी में अब फच फच फच फच की आवाजें गूंज रही थी.
अब शंकर मेरी दोनों टांगें उठा कर अपने कंधों पर रख कर ताबड़तोड़ मेरी चुदाई कर रहा था.
मेरी दर्द भरी सिसकारियां जोर-जोर से झोपड़ी में गूंज रही थी- आह हहह … मेरे राजा … उहह हहह … ममहह हहहउ उउईई ईईई … ममआ हहह … उई … मां मममररर … गई … आह आह … ओह … ऊऊऊ … ईईई!
अब तक मेरा पानी दो बार निकल चुका था लेकिन शंकर रुकने का नाम नहीं ले रहा था.
वह ताबड़तोड़ धक्के लगा कर मेरी बुर का सत्यानाश कर रहा था.
“मममह … आहह हह … उई मां … ईईईई … ईईईई … फच फच फच”
मेरा शरीर तीसरी बार अकड़ने लगा था और शंकर भी जोर जोर से धक्के लगा रहा था.
और तभी शंकर ने अपना लंड जड़ तक धक्का मारकर बुर में फंसा कर ढेर सारा गर्म गर्म वीर्य उड़ेला और साथ ही साथ मेरी बुर ने भी पानी छोड़ना शुरू कर दिया.
उसका लंड अंदर मेरी चूत की दीवारों को जोर जोर से ठोक रहा था और मुझे असीम सुख मिल रहा था।
मुझ से अब चुदाई का सुख जैसे झेला नहीं जा रहा था, मैंने शंकर दादा को नाख़ून मारे और मैं खुद अपनी गांड हिला कर उससे मजे लेने लगी.
शंकर मेरे कबूतर दबाने लगा, उसने मेरी चूत को पूरा भिगो दिया।
उसकी साँसें फ़ूल गई थी और वह थक सा गया था.
उसने मेरी तरफ प्यार से देखा और बोला- आज़िमा, अब तो तू ही मेरे दिल और झोपड़ी की मालकिन बनेगी.
उस रात शंकर दादा ने पूरी रात मुझे ताबड़तोड़ कई बार चोदा.
सुबह हम देर से सो कर उठे.
शंकर ने अपनी एक लुंगी और अपनी एक शर्ट मुझे पहनने को दे दी.
वह बाजार में खाने-पीने सामान का लेने चला गया और मैं शंकर की झोपड़ी को सजाने संवारने लगी.
उसका जो सामान इधर-उधर बिखरा हुआ था, उसको सलीके से लगाने लगी और साफ सफाई करने लगी.
जो उसके कपड़े गंदे पड़े हुए थे उनको धोकर मैंने सुखा दिए.
जब शंकर बाजार से सामान लेकर वापस आया तो अपनी झोपड़ी का हुलिया देख कर दंग रह गया.
क्योंकि अब उसकी झोपड़ी सजी संवरी होकर महल दिखाई दे रही थी.
शंकर खाने पीने का काफी सामान लेकर आया और साथ में एक रम की बोतल भी!
फिर मैं खाना बनाने लगी.
और खाना खाने के बाद शंकर ने मुझे फिर से 2 बार चोदा.
शंकर ने पूरे 7 दिन रात दिन मुझे ताबड़तोड़ जमकर जवान देसी गर्ल चुदाई करी. इन 7 दिनों में मैं शंकर की झोपड़ी से बाहर नहीं निकली और उसकी झोपड़ी में लुंगी पहनकर ही रही.
इन 7 दिनों में मैं शंकर के साथ उसकी बीवी की तरह पेश आ रही थी और शंकर भी मेरा हर आदेश मान रहा था.
शंकर दादा ने इन 7 दिनों में मुझे रात दिन चोद कर मेरा बॉडी फिगर चेंज कर दिया.
अब मेरे छोटे चूचे बड़े मोटे होकर सुडौल होकर रस भरे हो गए और मेरे चूतड़ भी बड़े बड़े होकर बाहर को निकल गए क्योंकि शंकर ने मेरी बुर के साथ-साथ मेरी गांड भी कई बार मारी.
शंकर मेरे हुस्न का जलवा देख कर मेरा गुलाम हो गया था और वो मेरी हर जरूरत को पूरा करता था.
मैंने सोच लिया था कि मैं शंकर को एक शरीफ आदमी बनाऊंगी और उसको सही रास्ते पर चल आऊंगी इसलिए मैं शंकर के साथ भागकर दूसरे शहर आ गई.
हमने वहां पर मंदिर में शादी कर ली.
शंकर ने भी एक परचून की दुकान खोल ली.
उसका काम काफी अच्छा चलने लगा.
आज हमारे 4 बच्चे हैं.
शंकर ने मुझे रात दिन चोद चोद कर चार बच्चों की मां बना दिया और हमारा सुखी जीवन चलने लगा.
चारों बच्चे स्कूल में पढ़ने जाते और हमारा सुखी जीवन व्यतीत होने लगा.
मेरी जवान देसी गर्ल चुदाई कहानी पढ़ कर आपको बहुत मजा आया होगा.
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